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जीवन -बहार
काले-काले बादल आए ,
छाई घटा घनघोर।
चमक - चमक कर बिजली गिरती ,
खूब मचाए शोर||
घूम -घूम कर सारा संसार
सूरज चाहे सोना।
ओढ़ कर बादलों की चादर,
बैठा किसी कोना।।
प्यासी धरती झूम रही है,
मिला उसको पानी।
अब सजेगी ,खूब खिलेगी ,
बिल्कुल जैसे रानी।।
छोड़ खिलौने बच्चे अब सब ,
बाहर झूमे नाचे।
दौड़ लगाए, नाव चलाए ,
मिलकर मामे,चाचे ।।
बेहाल जंगल अब फिरसे गरजा,
छोड़ा नया राग ।
जश्न मनाए धरती सारी,
बादलों का त्याग।।
रक्षा बंधन
वर्षा ऋतु है आई ,
राखी का त्योहार है लाई ,
घर पर मेरी बुआ है आई ,
अपने साथ घेवर लाई ,
और मेरे पापा को राखी पहनाई ,
मेरे भाई ने पहना कुरता ,
तो मैं भी फिर सज-कर आई |
भाई बहन का प्यारा रिश्ता ,
सबसे प्यारा , सबसे मीठा ,
सारे जग में सबसे सच्चा ,
होता है यह रिश्ता अच्छा |
अत्विका मेहंदिरत्ता
४-सरिस्का
मेरी अभिलाषा
मेरी है एक छोटी- सी अभिलाषा,
जानूँ मैं सभी जानवरों की भाषा,
जब हो कुत्ते और बिल्ली की लड़ाई,
समझूँ मैं उनका यह तमाशा।।
मेरे दिल की है यह तमन्ना,
ड्रैगन को बनाऊँ दोस्त, खिलाऊँ गन्ना।
उसकी पीठ पर बैठे घूमूँ पूरा आकाश,
ना रह जाए दुनिया का कोई पन्ना।।
रह गई बस एक आखिरी चाह,
साथ चले हम सभी एक नई राह,
लगाकर पेड़-पौधे हर किनारे,
बचाले दुनिया को होने से तबाह।।
ऋषभ बर्मन
४ गीर
दुर्गामती का स्वयंवर
200 साल पुरानी बात है,
भरतपुर राज्य में महाराजा देवेन्द्र प्रताप सिंह का राजा था |
एक बार राजा ने सोचा ,
क्यों ना करे स्वयंवर अपनी सुपुत्री दुर्गामती का |
विवाह के लिए रखी गयी थी एक शर्त,
चलो देखते हैं कौन है अक्लमंद मर्द |
एक घोड़े को बनाना था सफ़ेद , जो था काला ,
पर शर्त में था एक अज़ब मिर्च – मसाला |
नही कर सकते थे सफ़ेद रंग का प्रयोग ,
ये बात सुनते ही सोच में पड़ गये कार्यक्रम में आये हुए सब लोग |
कार्यक्रम को आरम्भ करते हुए एक बच्चे ने सुनाना था गाना ,
हर राजकुमार के आने से पहले प्रजा सुनती थी ये तराना |
आओ ढूंढे दुर्गामती के लिए एक वर
नहीं चाहिए केवल सुन्दरता और महल जैसा घर
महाराज की शर्त को भी पूरा कर उसको करना है ऊँचा अपना सर
पहले राजकुमार को मिली बारी अपनी समझदारी दिखाने की,
कोशिश की उसने बहुत काले को सफ़ेद बनाने की ,
ताज महल से भी सुंदर महल और सुन्दरता भी काम नहीं आई ,
क्यूँकि उसने महाराज की शर्त पर कोई उपलब्धि नहीं पाई |
आओ ढूंढे दुर्गामती के लिए एक वर
नहीं चाहिए केवल सुन्दरता और महल जैसा घर
महाराज की शर्त को भी पूरा कर, उसको करना है ऊँचा अपना सर
अब दूसरे राजकुमार को मिला था अवसर,
उसने तो शर्त सुनते ही दीवार में ही मार लिया अपना सर |
आओ ढूंढे दुर्गामती के लिए एक वर
नहीं चाहिए केवल सुन्दरता और महल जैसा घर
महाराज की शर्त को भी पूरा कर, उसको करना है ऊँचा अपना सर
अब तीसरे राजकुमार को अपनी बहादुरी थी दिखानी,
शर्त पूरी नहीं हुई, पर याद आ गयी उसको अपनी नानी ,
शर्त तो करनी थी पूरी, नहीं चलनी थी किसी की मनमानी |
आओ ढूंढे दुर्गामती के लिए एक वर
नहीं चाहिए केवल सुन्दरता और महल जैसा घर
महाराज की शर्त को भी पूरा कर, उसको करना है ऊँचा अपना सर
चौथे राजकुमार का नाम था देवरत,
सुन्दरता थी इतनी, की कोई भी राजकुमारी, रख ले उसके लिए व्रत |
देवरत अपनी चतुराई के लिए था मशहूर,
चेहरे पर, सूरज जैसा था नूर |
शर्त को पूरा भी करना था जरुर ,
क्यूँकि चाहता था वो भरना, दुर्गामती की मांग में सिन्दूर |
देवरत के पास था एक उपाय ,
कहा घोड़े को स्नान करवाया जाये |
स्नान करके घोड़े से उड़ गयी काली धूल ,
महाराज ने कहा यही है योग्य वर, नहीं है इसमें कोई भूल |
बिना रंग के इस्तेमाल किया गया घोड़ा सफ़ेद,
उड़ गया घोड़े से काली माया का भेद |
हो गया दुर्गामती और देवरत का स्वयंवर ,
खुश हाल जीवन बिताया उन दोनों ने फिर जीवन भर |
लेखिका
वन्दिता अरोड़ा
४
मेरी मां है सबसे प्यारी
वह दुनिया में है सबसे निराली वो हैं बड़ी सुंदर,
और वह पहनती है दो मुंदर |
उनका नाम है साध्वी उनमें हैं बड़ी सादगी,
वह है बड़ी प्यारी,
और हैं घर की रानी |
वो रखती मेरा ख़याल,
मेरा जन्मदिन मनाती है अच्छे से हर साल |
मेरी माँ हैं सबसे प्यारी,
वह दुनिया में है सबसे निराली |
आलिया अग्रवाल
४ कोर्बेट
भारत माता सबसे प्यारी
ये थी वो जंग,
याद रखने वाली|
वीर जवानो की,
वीरता की एक कहानी।
जंग हुई शुरु,
जब दुश्मन ने ना मानी।
लड़ेंगे हम जी जान से,
तब यह भारत ने ठानी।
हमारा देश, हमारी मिट्टी|
है सच्ची और न्यारी।
भारत माता सबसे प्यारी,
सबसे प्यारी, सबसे प्यारी|
अक्षन गुप्ता
५ कान्हा
अभ्यास का फल
डर से न काँपो , इस अवसर को जानो तुम।
ये वक़्त तुम्हें सिखा रहा,डर से न भागो तुम।।
खो जाओगे इस जहान में ,जो हिम्मत हार गए।
पहुँचोगे मंज़िल पे,जो इस डर को मारे गए।।
है ऊँची लहरें तो क्या डर,पार जाने की कोशिश कर।
मिल जाएगी विजय एक दिन,यूँ हार न माना कर।।
रखो उम्मीद और करते रहो सदा प्रयास।
मिल ही जाता है फल ,जो करते रहोगे अभ्यास।।
अविक अग्रवाल
४ गीर
नन्ही चिड़िया
एक नन्ही चिड़िया, सागर के किनारे ढूंढ़ रही थी खाना,
भूख लगी थी जोरों से, मुश्किल था सह पाना |
माँ ने खाना ढूँढकर एक आवाज लगाई,
पर तभी एक बड़ी लहर बीच में आई |
नन्ही चिड़िया वापस भागी दौड़- दौड़ कर,
दुसरे दिन भी ना निकली लहर से डर |
पर हिम्मत ना हरी उसने, ना मानी हार,
निकली खाना ढूँढने, फिर एक बार |
जब लहर वापस आई, हो गई फिर ढेर,
भागी वहां से जैसे पीछे हो एक शेर |
भागती हुई मिली एक नए जीव से,
दिखते छोटे और लाल रंग के |
रेत में छिप गए थे, लहर से बच रहे थे,
शिखा नन्ही चिड़िया ने यह, निकल गया उसका डर|
ढूँढती गई खाना, लहरों से बेखबर,
खुश हो गई माँ यह देखकर, करने लगी गर्व उसपर |
अर्चित कांडपाल
४ गीर
पाइपर
एक थी पाइपर,
थी वो बहुत प्यारी|
पेट में हुई गुड़- गुड़,
लगी थी भूख भारी|
ज़ोर से आई लहर,
पाइपर की ओर|
भागी छप-छप पाइपर,
किनारे की ओर |
खाने आई वह समुद्री शेल,
आई पानी की लहर|
डूब गई उसमें ,
निकल गया सारा डर |
अथर्व अहूजा
४ कॉर्बेट
निडर पिपरिया
एक शाम समुद्र किनारे,
पिपरिया पक्षी लहरों को निहारे|
खाने की खोज में चला किनारे ,
पर लहरों के डर से वापिस आ जाए|
केकड़ों की फ़ौज को देखे,
और फिर से हिम्मत जुटाए|
आती लहरों को देख कर,
भागे नहीं पर रेत में धँस जाए|
अब मिला उसे समस्या का समाधान,
निडर हो कर करने चला खाने का इंतज़ाम |
डर पर किया अपने काबू,
बन गए सबके हीरो बाबू|
रेने कपूर
४ कॉर्बेट