कथानक कविताएँ
खरगोश का सबक
एक था कछुआ एक था खरगोश,
दोनों ने दौड़ लगाने की सोच |
कछुए ने तेज़ चलने की ठानी,
मगर खरगोश बना रहा अभिमानी |
बीच में ली खरगोश ने झपकी,
तो जीत गया कछुआ बड़ी जल्दी |
कछुए ने सिखाया खरगोश को एक सबक,
ताकि भविष्य में खरगोश न जाये भड़क |
-अविक अग्रवाल, रिया जैन, रिशान साधू,
कुशाग्र यादव, उन्नित शर्मा, आयरा मंदिवाल
४ गीर
कछुआ और खरगोश
एक था कछुआ बिचारा जो दौड़ नहीं पाता तेज़ ,
लेकिन सामने आ गई एक दौड़ने वाली रेस |
लेकिन कछुए के साथ ,
खरगोश ने भी लिया पाठ |
सब चिडाने लगे कछूए को ,
क्योकि उन्हें लगा हार जाएगा वो |
सोते सोते खरगोश रह गया पेड़ के नीचे,
साथ में रह गया खरगोश कछुए के पीछे |
खरगोश को लगा की वो बन जाएगा हीरो ,
लेकिन वो अंत में बन गया जीरो |
कछुए की जीत को देखकर खरगोश को चढ़ गया बुखार ,
उसने मान ली अब अपनी हार |
-स्निकिता दास, अनाया मित्तल, लक्ष्य,
रणविजय डालमिया, अद्यंत
४ कान्हा
कछुआ और खरगोश
एक था खरगोश घमंडी बड़ा
जो भी मिलता कहता रेस लगा
जिससे लगाई रेस वो डर गया
शेर भी भागा - भागा घर गया |
चलो करते हैं आज की बात
लगाने लगा है आज खरगोश रेस कछुए के साथ
भागते - भागते हो गयी शाम
खरगोश ने सोचा चलो करे विश्राम |
जब नींद से उठा खरगोश
तो उड़ गये उसके होश |
खरगोश ने किया स्पर्धा का अंत,
यह देख खरगोश के गिर गये दंत |
खरगोश भाई आज तुम हारे
क्योंकि तुम देख रहे थे दिन में तारे |
होता न कोई छोटा न कोई बड़ा
अक्ल ही तो है हथियार
हम भगवान के ही तो बच्चे हैं
तो फिर घमंड करने का क्या तुक, मेरे यार
-सम्मिध भाटिया, सूचित दास, हर्षिता ,
वन्दिता अरोरा, अर्थव बगरिया
४ कान्हा
घमंडी खरगोश
जंगल में खरगोश था इतराता ,
अपनी तेज़ चाल पर घमंड दिखता |
एक रोज़ चनौती देकर कछुए को ,
सब छोड़ सामने भगा रेस में वो ||
कुछ दूर भाग फूली उसकी साँस ,
दिखा उसको पेड़ और नर्म-नर्म घास|
सो गया वहाँ ,करा उसने आराम ,
मगर कछुआ न भूला अपना काम ||
साँझ होने पर उठा जब खरगोश ,
समय देख उड़ गए उसके होश |
जब अंत लकीर पर पहुँचा वो ,
खड़ा था कछुआ जीता था जो ||
इसलिए कहते हैं लग्न में है जीत
बेकार के न गाओ घमंड के गीत |
-स्निग्धा शर्मा, समरवीर यादव, ऋषभ बर्मन,
अर्चित कांडपाल, जेन्या गेरा, साधिका धर
४ गीर
घमंडी खरगोश
एक था घमंडी खरगोश,
सब उसकी चाल देखर हो जाते थे मदहोश|
एक दिन उसने कछुए के साथ लगाई दौड़,
दोनों मे लगी जीतने की होड़|
खरगोश निकल रहा था आगे,
कछुआ आ रहा था पीछे- पीछे |
खरगोश ने सोचा अभी सो जाता हूँ ,
थोड़ा आराम कर लेता हूँ|
कछुआ भी क्या आगे बढ़ेगा,
मैं ही दौड़ जीतूँगा|
असली में हुआ कुछ और ही,
कछुआ ने जीत दौड़ ली|
-अरना मित्तल, अत्विका मेहंदीरत्ता,
कौस्तुभ जुयाल, रणवीर चोपड़ा
४ सरिस्का
कछुआ और ख़रगोश
एक था ख़रगोश,
उसके पास था बहुत जोश।
एक था कछुआ,
वह बहुत धीरे चलता।
खरगोश देता था सबको चुनौती,
मेरे सामने जीत किसी की न होगी|
उसने कछुए को दौड़ के लिए ललकारा,
कछुआ था नादान, समझ सका ना इशारा|
रेस में ख़रगोश दिखाना चाहता था कमाल,
पीछे कछुआ आया अपनी चाल ।
ख़रगोश बीच में रुक कर करने लगा आराम,
कछुए चलता रहा अपनी चाल|
कछुआ तब आगे निकला।
घमंडी खरगोश का दम निकला|
- अद्विक भनवाला, शब्दिका आनंद, साईंवी नैय्यर,
आयुषी डालमिया , विहान लखानी, पलक कथुरिया
४ सरिस्का
धीमी चाल पर किया कमाल
एक खरगोश था बड़ा घमंडी,
नहीं समझता था वो कुछ भी|
नीचा कछुए को दिखाने,
बुला भेजा उसे दौड़ लगाने|
ना घबराया, ना सकुचाया,
कछुए ने किया प्रतियोगिता को स्वीकार|
बढ़ने लगी भीड़ और बढ़ने लगी कतार,
देखने अद्भुत प्रतियोगिता इस बार|
बन्दर ने हरी झंडी दिखाकर,
दौड़ शुरू करने का किया ऐलान,
दोनों भागे जीतने और रखने अपना मान |
फुर्ती से भागा खरगोश,
पीछे रह गया कछुआ खामोश|
फिर खरगोश ने सोचा,
कछुआ तो धीरे चलता है,
और समय ज़्यादा लेता है|
क्यों न मैं कुछ सुस्ता लूँ?
खरगोश गया घने पेड़ के नीचे लेट,
मेहनती कछुआ जीत गया यह अद्भुत रेस|
खरगोश का घमंड हुआ चूर-चूर,
पर अपनी हार पर वह दुखी था ज़रूर |
आर्ना एडके – ४ कॉर्बेट
खरगोश का घमंड
एक था घमंडी खरगोश ,
था उसमें बड़ा ही जोश|
लोगों को वह चुनौती देता,
और सबसे जीतकर इनाम लेता|
एक दिन उसने दौड़ लगाई,
तैयार हो गया कछुआ भाई|
दौड़ने लगे दोनों साथ- साथ,
कछुआ था पीछे और आगे खरगोश ,
खरगोश सो गया रखकर सिर पर हाथ|
कछुआ जीत गया धीरे-धीरे,
और खरगोश सोता ही रह गया पेड़ के नीचे|
खरगोश पछता रहा था,
कछुआ जीत की ख़ुशी मना रहा था|
अद्विक जैन, दक्ष अग्रवाल, आरुष शर्मा,
हिमाक्षी अधाना, शौर्या यादव